सीनों पर फ़िर भवन बन गए छोड़ा नहीं कुछ भी खाली
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।।२६।
एक तरह से सबका स्वागत करती है साकीबाला,
राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,
प्रकृति, एक मां की तरह बिना कुछ मांगे ही, हमारी सभी जरूरतों को पूरा ख्याल रखती है। एक तरीके से प्रकृति हमारी जीवनदायनी है, जो न सिर्फ हमें अपने आंचल में समेटकर , हमें भोजन, पानी , शुद्ध हवा, देती है , बल्कि मुफ्त में ढेर सारे संसाधन उपलब्ध करवाती है, जिसके इस्तेमाल से हमारा जीवन बेहद आसान हो Hindi Poetry जाता है।
हमें नमक की ज्वाला में भी दीख पड़ेगी मधुशाला।।७५।
छलक रही है जिसके बाहर मादक सौरभ की हाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ,
मीडिया अफसर नेता मिलकर तब रोटियां खूब पकाते हैं
कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को?
जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण, पर नित्य नवेली मधुशाला।।२३।
बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला,
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,